दिल्ली, 04 अगस्त (ब्यूरो) : देश में पंजाब से आम आदमी पार्टी के इकलौते लोकसभा सांसद सुशील कुमार रिंकू ने आज संसद में ऐसा काम कर डाला, जिससे वे भारत ही नहीं दुनिया में मीडिया की सुर्खियां बन गए।
जालंधर से पार्षद से शुरू हुआ सफऱ संसद भवन में सांसद के रूप में पहुंचा है। पंजाब के कद्दावर दलित नेता सुशील रिंकू को आज दिल्ली सर्विस बिल पर बहस के दौरान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने निलंबित कर दिया है।
आपको बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह दिल्ली सेवा विधेयक से जुड़े चर्चा पर जवाब दे रहे थे। इसी बीच सांसद रिंकू ने लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट जाकर बिल की कॉपी को फाड़ कर फेंक दिया।
इस घटनाक्रम के बाद सांसद सुशील रिंकू देश ही नहीं दुनिया भर की मीडिया में छा गए। टीवी से लेकर सोशल मीडिया में सुशील रिंकू के इस कदम की जमकर तारीफ हो रही है, तो आलोचना भी हो रही है। उधर रिंकू ने कहा है कि मुझे इसका कोई अफ़सोस नहीं है।
पांच जून 1975 को सुशील कुमार रिंकू का जन्म जालंधर में हुआ था। रिंकू का पूरा परिवार कांग्रेसी था। रिपोटर्स के मुताबिक, उनके चाचा और पिता ने लगभग हर विधानसभा और संसद चुनाव में पार्टी कार्यकर्ता के रूप में काम किया। 1977 में आपातकाल के दौरान, उनके पूरे परिवार को कांग्रेस पार्टी का समर्थन करने के लिए जेल में डाल दिया गया था।
एनएसयूआई से शुरू की राजनीति
रिंकू ने अपने सियासी सफर की शुरुआत कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से की। 1990 में वह एनएसयूआई के सक्रिय सदस्य रहे। 1992 में पंजाब में उपचुनाव हुए तो सुशील कुमार रिंकू ने युवाओं को कांग्रेस से जोड़ा। बूथ स्तर पर नेताओं को जोड़ा।
1994 में सुशील रिंकू को डीएवी कॉलेज जालंधर में श्री गुरु रविदास की सांस्कृतिक सोसायटी के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। साल 2002 में लोकसभा चुनाव के दौरान कार्यकर्ता के तौर पर उन्होंने खूब मेहनत की। तब वह पार्टी के बड़े नेताओं की नजर में आए।
2006 में पहली बार निकाय चुनाव लड़े और पार्षद चुने गए। 2500 वोटों से जीत हासिल की। 2017 में उन्हें कांग्रेस ने जालंधर पश्चिम से टिकट दिया और वह विधायक चुन लिए गए। हालांकि, 2022 चुनाव में रिंकू को हार का सामना करना पड़ा था।
सुशील कुमार रिंकू छह अप्रैल को आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। उन्हें टिकट भी मिल गया। 10 मई को जालंधर में लोकसभा का उपचुनाव हुआ। 13 मई को नतीजे आए और 38 दिन के अंदर रिंकू सांसद बन गए।
सुशील रिंकू 57 हजार से ज्यादा वोटों से जीते। दूसरे स्थान पर कांग्रेस की करमजीत कौर चौधरी रहीं। वहीं तीसरे नंबर पर शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन के सुखविंदर सुखी और चौथे पर बीजेपी के इंदर इकबाल अटवाल रहे।