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MLA रमन अरोड़ा के प्रयासों से हुई श्रीमद् भागवत कथा के सातवें व अंतिम दिन उमड़ा भक्तों का सैलाब

कथा श्रवण करने पहुंचे पंजाब के कैबिनट मंत्री ब्रह्मशंकर जिंपा और स. हरभजन सिंह ईटीओ

जालंधर, 27 फरवरी (कबीर सौंधी) : सबको राम राम हम तो जाते अपने गाँव, जय जय राधा रमण हरि बोल, दुनियां के जगत रंग क्या देखूं तेरा दीदार काफ़ी है, किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए, श्री राधे गोविंदा हरि का प्यारा नाम है, ब्रजो रे वृंदावन धाम मिलेगे कुंज बिहारी, जपो रे राधे राधे राधे राधे नाम इत्यादि भजनों का दौर पटेल चौंक के साई दास स्कूल की ग्राउंड में देखने को मिला। जहां खचा-खच भगतों से पंड़ाल भरा हुआ था। वहां कथा पंडाल में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा विधायक रमन अरोड़ा की अध्यक्षता में चल रही थीं। कथा का शुभारंभ कैबिनट मंत्री ब्रह्मशंकर जिंपा ने ज्योति प्रज्वलित करके किया। जिसमें अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक जया किशोरी ने कथा के सातवें व अंतिम दिन कृष्ण सुदामा चरित्र, 24 गुरुओं की कथा, राजा परिक्षित का मोक्ष का वर्णन भगतों को बताया।

कथा में कैबिनेट मंत्री स. हरभजन सिंह ईटीओ ने विशेष तौर पर शिरकत कर अपनी हाज़री लगवाई। इस दौरान कथा वाचक जया किशोरी ने कहा कि जो देना जानता है, वो लेना भी जानता है। भगवान एक है, इंसान अनेक है। भगवान ने कहा सहायता करना मेरा काम है, भक्ति करना तुम्हारा काम है। सही काम के लिए खड़े होना सही है, अगर ग़लत का पलड़ा भारी हो जाए तो, या हद्द पार हो जाए, तो सत्य के लिए आवाज उठानी पड़ती है। भगवान पर भरोसा रखों, इंसानो को भगवान का दर्ज़ा ना दे। भगवान एक ही है। भगवान के 24 अवतार है। भगवान ने जन्म दिखाया है तो मृत्यु भी दिखाएगे। कथा में सुदामा चरित्र का वर्णन करते में हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है। और कथा में सुदामा की मनमोहक झांकी का चित्रण देखकर हर कोई भाव विभोर हो उठा।

कथा में भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए। वे कहते थे कि जिस किसी से भी जितना सीखने को मिले, हमें अवश्य ही उन्हें सीखने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। और प्रभु की भक्ति, साधना व ध्यान लगाने से आनंद व आत्म संतोष की अनुभूति होती है। प्रभु को निःस्वार्थ भाव से याद करना चाहिए। प्रभु को याद करते हुए फल प्राप्ति की लालसा नहीं रखनी चाहिए, यह विधान नहीं है। प्रभु को जब भी याद करो, तो यही कहो हे प्रभु आप आनंद पूर्वक हमारे निवास पर पधारो और विराजमान रहे। जब प्रभु आपके घर पर रहने लगेंगे तो, वह सब कुछ स्वयं मिल जाएगा। कथा में जया किशोरी ने मधुर वाणी से प्रवचन को सुनाते हुए कहा कि संसार में मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करना चाहिए, तभी उसका कल्याण संभव है। माता-पिता के संस्कार ही संतान में जाते हैं।

संस्कार ही मनुष्य को महानता की ओर ले जाते हैं। श्रेष्ठ कर्म से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अहंकार मनुष्य में ईष्र्या पैदा कर अंधकार की ओर ले जाता है। मनुष्य को सदा सतकर्म करना चाहिए। उसे फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ देनी चाहिए। कथा के अंत में सबको राम राम, हम तो जाते अपने गाँव, जय जय राधा रमण हरि बोल, दुनियां जगत रंग क्या देखूं तेरा दीदार काफ़ी है, किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए, बजों रे वृंदावन धाम मिलेगे कुंज बिहारी, जपो रे राधे राधे राधे राधे नाम इत्यादि भजनों को प्रस्तुत कर भगतों को नाचने के लिए विवश कर‌ दिया। तदुपरांत श्रीमद् भागवत भगवान की आरती कर कथा को विश्राम दिया गया।

इस मौके महेश मखीजा, राहुल बाहरी, राजू मखीजा, राजू मदान, दविंदर वर्मा, अरुण आनंद, विनोद शर्मा, शिवम मखीजा, गीता अरोड़ा, राधा मदान, साक्षी अरोड़ा, बॉबी मखीजा, दीपिका बाहरी, ममता मखीजा, रमेश अरोड़ा, बिट्टू, दीपक कुमार, राज अरोड़ा, ऊर्जा मदान, शाम शर्मा, सोनू बजाज, मनीष बजाज, गौरव अरोड़ा इत्यादि अन्य भक्त उपस्थित थे।

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