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जालंधर का किडनी कांड : 7 साल से बिना जमानत घूम रहा एक नामचीन आरोपी

पहले बिना सरकार की मंजूरी इंसानों की किडनियां निकालीं, फिर कानून से आंखमिचौली खेली

 

क्या आम आदमी पार्टी सरकार इस मामले को गंभीरता से लेगी

 

जालंधर 27 अक्टूबर (ब्यूरो) : पंजाब में कांग्रेस काल में हुए भ्रष्टाचार और घोटालों पर नकेल कसने वाली आम आदमी पार्टी के लिए उन मामलों को उठाना और भी जरूरी है जिन पर अभी तक उसकी नजर नहीं पड़ी है। ऐसा ही एक मामला जालंधर के किडनी कांड से जुड़ा है और इस मामले में बरती गई लापरवाही और अनियमितताओं के कारण पूर्व मंत्रियों पर अंगुली उठना लाजिमी है। यह मामला जालंधर का वो किडनी कांड है जिसने पूरे पंजाब को हिलाकर रख दिया था। इस मामले में जिन नामचीन महोदय का नाम प्रमुख रूप से सामने आया था उन्होंने अदालत की आंखों में तो धूल झोंकी ही वहीं मेडिकल जगत को अब तक चकमा दे रहे है। उक्त नामचीन महोदय पर कथित आरोप यह है कि किडनी कांड में इन्हें आज तक नियमित जमानत ही नहीं मिली और सालों से खुद को जमानत पर छूटा बताकर जेल से बाहर घूम रहे हैं और यहां तक कि कानून की आंखों में धूल झोंककर विदेशों के चक्कर तक लगा आए हैं। हमने इस संबंध में इनसे संपर्क करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो पाया।

जालंधर में इस डॉक्टर ने कथित रूप से अपनी पत्नी व एक और अन्य डा. दंपत्ति के साथ साल 2010 में एक अस्पताल खोला और वहां किडनी ट्रांसप्लांट का काम शुरू किया। इस डॉक्टर के अलावा जो बाकी तीन थे उनमे एक नैफ्रोलोजिस्ट था और दूसरी हाउसवाइफ और तीसरी साधारण डॉक्टर। इन चारों ने ब्लड रिलेशन में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू किया जोकि पूरी तरह से गलत था क्योंकि पंजाब में सिर्फ डीएमसी लुधियाना और फोर्टिस मोहाली को ही ब्लड रिलेशन में किडनी ट्रांसप्लांट का अधिकार है। ब्लड रिलेशन में किडनी ट्रांसप्लांटेशन का मतलब होता है खून के रिश्ते में किडनी दान देना और किडनी दान लेना। फर्जी दस्तावेजों के सहारे किडनी खरीदने व बेचने वाले में आपस में खून का रिश्ता दर्शाया जाए। 2012 में इनका लाइसेंस कैंसिल हो गया क्योंकि इनका यूरोलॉजी एवं ट्रांसप्लांट का प्रमाण पत्र जालंधर के किसी अन्य अस्पताल में भी प्रयोग हो रहा था। इस मामले की शिकायत जब की गई तो जांच के बाद लाइसेंस को 25.09.2012 से 24.09.2013 तक सस्पेंड कर दिया गया। फिर कुछ माह बाद लाइसेंस 1.10.2013 से 30.9.2014 के लिए रिन्यू किया गया। हालांकि लाइसेंस सस्पेंशन के काल में अस्पताल में बिना मंजूरी किडनी ट्रांसप्लांटेशन का काम अवैध रूप से चलता रहा लेकिन जुलाई 2015 में जालंधर में पुलिस ने किडनी कांड का पर्दाफाश कर दिया। मामले का खुलासा होने पर डीआरएमई सचिव हुस्न लाल ने लिखा कि जालंधर पुलिस कमिश्नर को मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन करने और कोर्ट में चालान पेश करने का अधिकार है।

इसके बाद पुलिस ने उक्त डॉक्टर सहित 23 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। 30 जुलाई 2015 को थाना नंबर 7 की पुलिस ने एफआईआर नंबर 123 भारतीय दंड संहिता की धाराओं 465, 467, 468, 471, 420 और ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एवं टिश्यूस एक्ट 1994 की धाराओं 18,19 और 20 के तहत दर्ज की गई। अदालत में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल हो हुई। उक्त डाक्टर ने अपनी पत्नी सहित अग्रिम जमानत याचिका लगाई जोकि 3 सितंबर 2015 को रद्द हो गई। इसके बाद इन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया और वहां इन्हें जांच में शामिल होने के लिए अंतरिम जमानत मिली। इसके बाद उक्त डाक्टर ने इस अंतरिम जमानत को नियमित जमानत बताते हुए कानून से आंख मिचौली शुरू की। इन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और शोर डाल दिया कि उन्हें जमानत मिल गई है। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है और सात साल से ये बिना जमानत के घूम रहे हैं।

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