शिवलिंग अर्थात् भगवान शिव का चिन्ह। लिंग एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है चिन्ह (Symbol)
शिवलिंग का लंबोतरा/अंडाकार रूप ब्रह्मांड का अखंड रूप दर्शाता है। जो श्री गुरु महादेव शिव शंभू जी का पूरी सृष्टि के केंद्र और पूरी सृष्टि के भोलेनाथ में समय होना का प्रतीक है।
जिस बेस को गलत भरना से जोड़ कर हमरी संस्कृति को खंडित कर हमरी सोच और भक्ति को खंडित करने का षड्यंत्र रचा गया जो बेस/शिवलिंग का तला जल मार्ग है जो जल के निरंतर बहाव से बनता है।
पुरातन शिवलिंग भूमि मैं ही स्थित होते थे। समय के साथ हमरी संस्कृति से हुई छेड़ छाड़ के कारण और कुछ घमंडी राजाओं के कारण शिवलिंग का जल मार्ग थोड़ा ऊपर किया गया ताकि मनुष्य को अमृत रूपी जल का प्रसाद लेने के लिए झुकना न पड़े।
पुराने समय में शिवलिंग पर निरंतर जल चढ़ाया जाता था इस लिए दूध, घी, तेल आदि की आवश्कता नही पड़ती थी। समय के साथ जब शिवलिंग की स्थापना जल स्थान से दूर भी होने लगी तो वहां दूध, घी, तेल आदि से अभिषेक शिव रूप शिवलिंग को लंबे समय तक उसी रूप में बनाए रखने के लिए किया जाने लगा। जब हम किसी पत्थर को तराश कर उसे शिवलिंग रूप देते हैं और शिवलिंग की पूजा करते हैं तो जिस ऊर्जा के केंद्र से हम जुड़ते हैं उनकी ऊर्जा उस शिवलिंग में केद्रित हो जाती है। जहां हमारे श्री प्रभु भोलेनाथ जी की ऊर्जा हो उसे संजोए रखना और उस शिवलिंग के लंबे समय तक बने रहने के लिए उसमें नामी का होना बोहोत ज़रूरी है। जिस तरह नदी में मौजूद पत्थर हजारों सालों तक बने रहते हैं उसी तरह कुछ समय शिवलिंग पर जल चढ़ा कर घी लगा दिया जाता था। दूध में मौजूद वसा फैट नामी को ज़ादा समय तक बनाए रखती है, और दूध को प्रसाद रूप में बांट दिया जाता था। समय के साथ शर्धालुओं और जनगणना में वृद्धि होने के कारण पानी में थोड़ा सा दूध डाल कर चढ़ने की परंपरा शुरू की गई।
आज हम शिवलिंग को जल मार्ग के साथ ही स्थापित करते हैं क्योंकि निरंतर जल का बहाव बना पाना मुमकिन नहीं है सनातन समाज पर हुए इतने हमलाकरिओं ने जब देखा की सनातनी अपने परमेश्वर पर इतना विश्वास करते हैं की मरने करने तक चले जाते हैं तो उन्हें पूरी धरती पर मौजूद एक ही धर्म को तोड़ने की कोई नीति नहीं मिली। तब किसी कुटिल सोच वाले ने उन्हें हमारे धार्मिक स्थल और आस्था केंद्र की पहचान को ही देने की सलाह दी। और उसके बाद कही हमारे मंदिरों को खंडित कर मस्जिद बनाई गई और कहीं हमारे धार्मिक केद्रों को मिटा दिया गया। फिर भी जब उन्हें जीत न मिली तो हमारी आस्था और संस्कृति की नीव हमारे ज्ञान के स्त्रोत्र पुरातन काल की बातें और लिखित रूप में मौजूद करोड़ों पुस्तकों को ज्यादा तर जला दिया गया और बाकी को इस तरह बदल दिया गया की अधिकतर मानव समाज आज वही सब सच मानता है उन्होंने जब हमें तोड़ने के सभी असफल प्रयास कर लिए तो हमारी संस्कृति को की बदलना शुरू कर दिया। सनातनी कभी कम वासना का शिकार नहीं थे और हमलावर जानते थे की वासना ही एक मात्र ऐसी इच्छा है जो मानव को हरा सकती है तो उन्होंने हमारे सबसे पवित्र धार्मिक केंद्र को ही इतिहास की पुस्तकों में काम भाव से जोड़ दिया। आज इंटरनेट पर मौजूद अधिकतर आधार सामग्री इन्हीं हमलावरों के दिखाए इतिहास से ली गई है। और ये जंग आज भी जारी है।
श्री गुरु महादेव जी और श्री गुरु हनुमानजी के आशीर्वाद रूपी ज्ञान सागर से समाज को इस युद्ध में जिताने का प्रयास जारी रहेगा।