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सेंट्रल हलके से रमन अरोड़ा अगर चुनाव हारे तो ये तीन कारण होंगे जिम्मेवार

जालंधर 26 जनवरी (धर्मेंद्र सौंधी) : पंजाबी की एक मशहूर कहावत है कोई मरे कोई जीवे ….घोल पतासे पीवे…इस कहावत का अर्थ है कि जिसने अपना लाभ देखना है उसे किसी के जीने मरने से कोई वास्ता नहीं बस उसे अपना प्रॉफिट नजर आना चाहिए। यह कहावत उन चमचों पर सटीक बैठती है जो आम आदमी पार्टी के सेंट्रल हलके के प्रत्याशी रमन अरोड़ा के आसपास घूम रहे हैं। इन्होंने अपनी बातों से नामांकन दायर होने से पहले ही रमन अरोड़ा को जिता दिया है। अब भला कोई इनसे कोई पूछे भाईसाहब जरा रुकिए तो सही। नामांकन तो होने दीजिए। रमन अरोड़ा साफ छवि लेकर मैदान में उतरे थे। उतरते ही सिर मुंडवाते ओले गिरने वाली कहावत चरितार्थ हुई और प्रैस क्लब परिसर में पंगा पड़ गया और माफी मांगनी पड़ी भगवंत मान को। रमन अरोड़ा पूरे दलबल के साथ उसी तरह जीत के लिए जोर लगा रहे हैं जैसे कि बाकी प्रत्याशी लगाते हैं। हालांकि विधायक राजिंदर बेरी के समर्थकों का साफ कहना है कि कोई नहीं है टक्कर में पड़े हो कौन से चक्कर में। रमन अरोड़ा जोकि एक भजन गायक भी हैं उनकी प्रस्तावित हार के कारणों को ढूंढा जाए तो तीन कारण हमारे सामने आएंगे। ये कारण हैं जुबान, पहचान और मेहमान। पहला कारण जुबान जिस पर रमन अरोड़ा का कंट्रोल शायद नहीं है और इसका खामियाजा वे भुगत रहे हैं। एक तथाकथित वीडियो में गलत शब्दों का प्रयोग उनके द्वारा किया गया। गंदे शब्दों की लाइन रमन अरोड़ा ने जिस साफगोई से बोली उसने तो बेड़ागर्क कर दिया। कांग्रेस में थे तब बोले थे अब आप में आए तो गले की फांस बन गई। दूसरा कारण है पहचान।

सूत्रों के मुताबिक अपनी पहचान बनाने के लिए रमन अरोड़ा ने जो फर्जी रिपोट्र्स प्रकाशित करवाई उन पर हाईकमान ने अंगूठा दिखाते हुए रिपोट्र्स की वास्तविक प्रति मांगी है। अब व्हट्सएप की प्रति तो मानी नहीं जाएगी। यानि रिपोट्र्स फर्जी निकली। तीसरा कारण है मेहमान, रमन अरोड़ा के दफ्तर में मेहमान तो बहुत आते हैं लेकिन वो सिर्फ मेहमान हैं। भारतीय संस्कृति में अतिथि देवो भव: कहा गया है लेकिन इस मेहमान को रमन अरोड़ा अपना वोटर समझ बैठे हैं। अब वेस्ट हलके का मेहमान सेंट्रल में थोड़ी वोट डालेगा। इसलिए चमचों की फौज से घिरे रमन अरोड़ा को इस बात का भली भांति ज्ञान होना चाहिए कि टिकट लेकर उन्होंने बेशक जंग शुरू कर दी लेकिन सेंट्रल हलके के वोटरों के दिलों का बाहुबली बनना आसान नहीं। बाकी अगली किश्त में।
सेंट्रल हलके में एक और अकाली प्रत्याशी हैं जिन्होंने आज संगत सिंह नगर में लाव लश्कर के साथ डोर टू डोर किया लेकिन जनसमर्थन उस धूप की तरह था जो आजकल कम ही दिखाई देती है। बाकी अकाली दल के लिए भी जीत का चंदन माथे पर लगाना आसान नहीं।

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