जालंधर (कबीर सौंधी) : महाशिवरत्रि – प्रभु महाशिव की रात्री। वो रात जब हर अच्छी भुरी ऊर्जा परभु में समा जाती है। चंद्र महीने की 13 वीं रात और 14 वें दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। सभी 12 शिवरात्रियों में, महाशिवरात्रि वह है जो फरवरी-मार्च में होती है और इसका सबसे अधिक आध्यात्मिक महत्व है। इस रात को ग्रह का उत्तरी गोलार्ध इस तरह से तैनात होता है कि मानव में ऊर्जा का एक प्राकृतिक चढ़ाव/बढ़ावा होतो है। यह एक ऐसा दिन है जब प्रकृति जन मानस को एक आध्यात्मिक ऊँचाई/शिखर की ओर धकेल रही होती है। इसका उपयोग करने हेतु ही इस परंपरा में हम पूरी रात मन्त्र जप, 4 पहर की पूजा और कीर्तन करते हैं। परम ईश्वर ओमकार स्वरूप, प्रेम और ऊर्जा के शुद्ध रूप भगवान शिव – महादेव – शिव शंभु से जुड़ने के लिए। और ऊर्जा के इस प्राकृतिक अपसरण को उसका रास्ता खोजने में सहायता करने में, एक सबसे अच्छा तरीका यह सुनिश्चित करना है कि आप रात भर अपनी रीढ़ को सेधा रखते हुए जागते रहें। ईश्वरीय अस्तित्व से जुड़ना इससे अधिक आसान कभी नहीं हो सकता।
महाशिवरा्रि के पावन अवसर पर मंत्र जाप ॐ | ॐ नमः शिवाय | शंभो | आपका गुरु मंत्र | शिव मंत्र स्तोत्रम | महा मत्युंजय मंत्र | आदि अन्य कोई भी स्तोत्रम का जाप महाशिवरत्रि की रात (13 वी चंदर मास रात) और दिन (14 वां चंदर मास दिन) में करना बोहोत लाभकारी है। भोले नाथ के श्री चरणों से जुड़े रहने से और उनकी भक्ति में लीन होने से जो कुद्रती शक्ति/ऊर्जा का प्रवाह शरीर में होता है उससे आप खुद को एक अलग स्तर पर परभू से जुड़ा हुआ पाएंगे।
ॐ का जाप करते वक्त एक बात का ध्यान रखे ॐ शब्द को जब हम बोलते है वह ओम नहीं बल्कि अ उ म होता है। AUM – अ उ म ये वो तीन शब्द हैं जी बचा मां बोलने से भी पहले बोल पता है। कोई गूंगा भी हो तो भी वो इन तीन शब्दों को बोल पाता है। ध्यान रखें जब भी आप ॐ का उच्चारण करते हैं तो ध्वनि अउम होनी चाहिए। कुदरत के अस्तित्व और उसकी मौजूदगी के स्त्रोत ॐ कि ध्वनि के साथ एक होकर देखिए कुछ ही दिनों में आपको अपने भीतर परिवर्तन महसूस होने लगेगा।
भोलेनाथ कृपा बनाई रखें।