शांत मन में ही ईश्वर का निवास होता-नवजीत भारद्वाज
जालंधर 09 दिसंबर (कबीर सौंधी): मां बगलामुखी धाम गुलमोहर सिटी नजदीक लम्मां पिंड चौक में श्री शनिदेव महाराज के निमित्त श्रृंखलाबद्ध हवन यज्ञ का आयोजन मंदिर परिसर में किया गया। मां बगलामुखी धाम के संचालक एवं संस्थापक नवजीत भारद्वाज ने बताया कि पिछले 11 वर्षों से श्री शनिदेव महाराज के निमित्त हवन यज्ञ जो कि नाथां बगीची जेल रोड़ में हो रहा था इस महामारी के कारण वश अल्पविराम आ गया था अब यह हवन पिछले लगभग 29 महीने से मां बगलामुखी धाम गुलमोहर सिटी में आयोजित किया जा रहा है। सर्व प्रथम मुख्य यजमान अनुज कुमार से वैदिक रीति अनुसार गौरी गणेश, नवग्रह, पंचोपचार, षोडशोपचार, कलश, पूजन उपरांत ब्राह्मणों ने आए हुए सभी भक्तों से हवन-यज्ञ में आहुतियां डलवाई । इस सप्ताह श्री शनिदेव महाराज के जाप उपरांत मां बगलामुखी जी के निमित्त भी माला मंत्र जाप एवं हवन यज्ञ में विशेष रूप आहुतियां डाली गई। हवन-यज्ञ की पूर्णाहुति के उपरांत नवजीत भारद्वाज ने आए हुए भक्तों से अपनी बात कहते हुए कहा कि मनुष्य अपने मन को इतना अधिक पवित्र बना सकता है जिसमें वह ईश्वर का दर्शन तक कर सकता है। मनीषी मनुष्य को समझाते रहते हैं कि शुद्ध मन में ईश्वर को देखना सरल होता है। वैसे तो मालिक हर मनुष्य के मन में विद्यमान रहता है, परंतु उसे वही देख सकता है जो अपने मन को इस योग्य बना लेता है। परमपिता परमात्मा हमारे इन भौतिक चक्षुओं से नहीं दिखाई देते। उसे अपने मन के चक्षुओं के द्वारा ही देखा जा सकता है। इनसे मालिक को देखने के लिए मनुष्य को निरन्तर अभ्यास करने की आवश्यकता पड़ती है।
उन्होंने कहा कि शांत मन मनुष्य की आत्मशक्ति होता है। मनीषी ऐसा मानते हैं कि शांत मन में ही ईश्वर का निवास होता है। मन शांत कैसे रहे? यह समझने वाली बात है। मनीषी कहते हैं, जब मनुष्य अपने मन को साधता है, तभी वह शांत रह पाता है अन्यथा दुनिया के मकड़जाल में उलझा हुआ वह सदा अशांत रहता है। मन का क्या है, उसे तो बस बहाना चाहिए इधर-उधर भटकते रहने का। अभी वह सबके बीच बैठा मस्ती कर रहा है और अगले ही पल बिना किसी कारण के उदास हो जाता है। फिर अपने साथ-साथ सबको ही परेशान कर देता है। सारी मस्ती पल भर में न जाने कहां काफूर हो जाती है? जल यानी पानी का उदाहरण लेते हैं। जब पानी उबलता है तो उसका रूप बदलने लगता है। पानी भाप में बदलने लगता है। इसलिए उस जल में अपना प्रतिबिंब हम नहीं देख सकते परंतु जब यही पानी शांत हो जाता है तो उसमें हम खुद को आइने की तरह स्पष्टता से देख सकते हैं। इसी प्रकार शांत पानी में यदि कंकर फेंकने से वह आंदोलित होने लगता है तो उस हिलते हुए जल में भी कोई अपना प्रतिबिम्ब नहीं देख सकता क्योंकि हिलते हुए जल में अपनी परछाई भी टेढ़ी-मेढ़ी दिखाई देगी, अत: जल का शांत होना आवश्यक होता है। ठीक इसी प्रकार यदि हमारा हृदय शांत बना रहता है, तभी हम चमत्कार कर सकते हैं। अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को निहारने में भी सक्षम हो सकते हैं। इसमें रंचमात्र भी कोई संदेह नहीं है कि मनुष्य अपने सुनहरे भविष्य का निर्माण स्वयं ही कर सकता है। शांत मन में ही सुविचारों का उदय होता है और कुविचारों को दूर भगाया जा सकता है।
इस अवसर पर समीर कपूर,सौरभ अरोडा, राकेश प्रभाकर बलजिंदर सिंह, अमरजीत सिंह,वावा जोशी, नवदीप,उदय,अजीत कुमार,गुलशन शर्मा, अश्विनी शर्मा धूप वाले, मुनीश शर्मा, दिशांत शर्मा,अमरेंद्र शर्मा, मानव शर्मा, बावा खन्ना, विवेक शर्मा, शाम लाल, एडवोकेट राज कुमार, अभिलक्षय चुघ,सुनील,राजीव, राजन शर्मा, प्रिंस, अशोक शर्मा,ठाकुर बलदेव सिंह, अजीत साहू,प्रवीण, दीपक ,अनीश शर्मा, साहिल,सुनील जग्गी सहित भारी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। आरती उपरांत प्रसाद रूपी विशाल लंगर भंडारे का भी आयोजन किया गया