जालंधर (राज कटारिया) : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के आश्रम 398, मोता सिंह नगर, जालंधर में श्री आशुतोष महाराज आयुर्वेदिक फार्मेसी (संजीविका) उत्पादों का आउट-लेट खोला गया।
आउट्लेट का शुभारंभ नूरमहल से आये पंडित जी द्वारा पूजन व मंत्रोचार के साथ हुया।
इस दौरान श्री राजेंद्र बेरी (विधायक), मनमोहन सिंह (पार्षद), गौतम जी, अश्वनी कुमार (विक्टर टूल्ज़), राजेश विज जी (देवी तालाब मंदिर, रोहित गम्भीर (सेक्रेटेरी बार एसोसिएशन), संजय सरीन (ऑल इंडिया रेडीओ), गुरप्रीत सिंह विरक (विरक प्रापर्टी डीलर), अमन बग्गा (चेयरमैन डिजिटल मीडिया एसोसिएशन), तरुण सिक्का (सेक्रेटेरी जिमखाना क्लब), एम. के. जैन (CA), कमल अग्रवाल, रविन्दर सिंह धालीवाल, अमित तलवार, दीपक सहगल, स्वामी सदानंद जी, स्वामी सज्जनानंद जी द्वारा नारियल फोड़ कर किया गया।
साध्वी पल्लवी भारती जी ने बताया कि 200 से अधिक औषधियों का निर्माण संस्थान की फ़ार्मसी में होता है उसकी उपलब्धता अब मोता सिंह नगर आश्रम में भी होगी।
प्रत्येक शनिवार आयुर्वेदाचार्या शाम 4 बजे से 7 बजे तक OPD किया करेंगें। कोई भी सज्जन सप्ताह के सातों दिन सुबह 9 बजे से रात्रि 9 बजे तक उत्पाद ले सकता है। सभी उत्पाद गुणवत्ता और शुद्धता के आधार पर खरे हैं। 21वीं सदी में बढ़ते हुए शहरीकरण, प्रदूषण, अनियमित आहार विहार और औद्योगिकीकरण से जहां वृक्ष कटाव के कारण प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति पैदा हुई है वहीँ प्रदूषित वायु में सांस लेना भी दूभर हो चुका है।
परिणामस्वरूप आज मधुमेह, टी०बी, कैंसर, डेंगू, चिकनगुनिया, पाचन विकार, विविध वात, पित्त व कफ जनित रोग व विविध विषम ज्वरों में अभिवृद्धि हो रही है।
समाधानस्वरूप “आयुर्वेद और स्वास्थ्य” का समन्वय करते हुए बताया कि “आयुर्वेद” आर्यावर्त भारतीय मनीषियों की मेधा प्रज्ञा से प्रतिपादित “ऋग्वेद” का उपवेद है। “आयुर्वेद” अन्य स्वास्थ्य चिकित्सा पद्धतियों के अपेक्षाकृत विश्व कि सबसे प्राचीन और पूर्ण प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वेद जहाँ आयुष्य वृद्धि का जनक है वहीं इसका प्रयोजन रोगी के विकारों का शमन करना तथा स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की पूर्णतः रक्षा करना भी है।आयुर्वेदीय चिकित्सा विधि सर्वांगीण है।
आयुर्वेदिक चिकित्सा के उपरान्त व्यक्ति की शारीरिक तथा मानसिक दोनों में सुधार होता है। आयुर्वेदिक औषधियों के अधिकांश घटक जड़ी-बूटियों, पौधों, फूलों एवं फलों आदि से प्राप्त की जातीं हैं। अतः यह चिकित्सा प्रकृति के निकट है। व्यावहारिक रूप से आयुर्वेदिक औषधियों के कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिलते। अनेकों जीर्ण रोगों के लिए आयुर्वेद विशेष रूप से प्रभावी है। आयुर्वेद न केवल रोगों की चिकित्सा करता है बल्कि रोगों को रोकता भी है। आयुर्वेद भोजन तथा जीवनशैली में सरल परिवर्तनों के द्वारा रोगों को दूर रखने के उपाय सुझाता है। आयुर्वेदिक औषधियाँ स्वस्थ लोगों के लिए भी उपयोगी हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा अपेक्षाकृत सस्ती है क्योंकि आयुर्वेद चिकित्सा में सरलता से उपलब्ध जड़ी-बूटियाँ एवं मसाले काम में लाये जाते हैं। आज “विश्व स्वास्थ्य संगठन W.H.O” द्वारा भी “स्वास्थ्य” की परिभाषा आयुर्वेदिक मनीषी “महर्षि सुश्रुत” के सूत्र का आधार लेकर ही प्रस्तुत की गई है जिसमें इस तथ्य को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया है कि “स्वास्थ्य केवल मात्र रोग व दुर्बलता से रहित शरीर का नाम नहीं है अपितु शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक सौख्य की परम स्थिति को प्राप्त करना है।” इसी तथ्य के अनुसार आज संस्थान द्वारा सम्पूर्ण विश्व में “निशुल्क आयुर्वेदिक शिविरों” का आयोजन कर जनमानस को रासायनिक खादों से मुक्त विशुद्ध प्राकृतिक जड़ी बूटियों व अपने “कामधेनु” प्रकल्प के अंतर्गत “भारतीय नस्ल की देसी गायों के विशुद्ध “पंचगव्य” से निर्मित आयुर्वेदिक औषधियां उपलब्ध करवाईं जा रहीं हैं था निरोगी समाज की संरचना करते हुए “सर्वे सन्तु निरामया:” की अवधारणा को पूर्ण किया जा रहा है। उपस्थित जनसमूह ने शिविर का सम्पूर्ण लाभ लेते हुए संस्थान का हार्दिक आभार व्यक्त भी किया।