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केजरीवाल के लिए आपसी फूट के कारण दिन-प्रतिदिन कठिन होती जा रही है डगर पंजाब की

जालंधर, (धर्मेंद्र सौंधी) : पंजाब में विधानसभा चुनाव के लिए एक साल से भी कम वक्त बचा है। 2017 के चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) ने काफी जोर-शोर से ताल ठोकी थी। हालांकि नतीजों में पार्टी को उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं हासिल हुई थी। पार्टी एक बार फिर 2022 की तैयारियों में जुटी है।

एक-एक कर केजरीवाल का साथ छोड़ रहे नेता

पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले केजरीवाल के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। फुल्का, खैरा और डॉक्टर धर्मवीर गांधी जैसे नेता उनका साथ छोड़ चुके हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से पार्टी ने पंजाब में कोई बड़ा आंदोलन नहीं चलाया है। इसके उलट पार्टी को अंदरूनी कलह और टूट से जूझना पड़ा है। पंजाब इकाई की स्वायत्तता के मुद्दे पर केजरीवाल को कई नेता निशाना बनाते हुए पार्टी छोड़ चुके हैं। 2017 के चुनाव में नशाबंदी और स्थानीय समस्याओं को लेकर केजरीवाल ने जोरदार अभियान चलाया था। तब पार्टी को 117 में से 20 सीटें हासिल हुई थीं। लेकिन इस बार राज्य के परिदृश्य से आम आदमी पार्टी गायब दिख रही है। ऐसे में केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए पंजाब की डगर कठिन होती जा रही है। यहाँ जिक्र योग बात यह है कि बीते चुनावों में भी आम आदमी पार्टी चौथे स्थान पर रही इसके विपरीत दो विधायक वाली पार्टी भाजपा तीसरे स्थान पर रही। जबकि पंजाब में आप के 20 के करीब विधायक है। पंजाब में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता दावे कर रहे हैं कि 2022 में पंजाब में उनकी सरकार बनेगी अब तो समय ही बताएगा कि 2022 के चुनावों में आप की क्या रणनीति रहेगी ।

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